anilarya
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कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका और मीडिया यानि कि लोकतंत्र के चार खम्बे… और आज ये चारों खम्बे धराशायी होने को हैं…संसद हो या विधानसभा या फिर नगर-ग्राम की चुनी हुई प्रतिनिधि सभाएं…आलम हर ओर एक जैसा ही है…भ्रष्टाचार आम है…सरकारें नकारा और निकम्मी सी हो गई हैं…नेताओं की दशा और दिशा देख सर धुनने का मन करता है…देर से मिलने वाला न्याय भी कई बार भ्रष्टाचार के दरवाजे से ही होकर गुजरता है…इन सब पर लगाम रखने और लोकतंत्र की चौकीदारी की जिम्मेदारी मीडिया की मानी जाती रही है, पर आज वहां भी आलम वही है…सब एक दूसरे के गलबहियां हो रहे हैं यानि कि हमाम में सब नंगे हैं…आखिर इस सबका दोषी कौन….?
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