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परिवार यूं ही बढ़ते हैं और संसार यूं ही चलता है..

anilarya
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बीती शाम ही छोटे भाई के साथ जमीन पर बैठकर एक ही थाली में आलू के झोल के साथ रोटी खा रहा था….भाई कहने लगा-“भैया याद आया कैसे गाँव में चूल्हे के सामने बैठकर आलू के झोल के साथ रोटी खाते थे..!!! माँ रोटी बनाती जाती और हम पहली गस्सी (रोटी का पहला ग्रास) के लिए झगड़ते थे कि पहले मैं लूँगा कि पहले मैं लूँगा. जब छोटी बहन भी संग बैठने लगी तो पहली गस्सी कौन उसे पहले खिलायेगा इस पर झगडा होता था.” सच बहुत याद आए वो दिन पर अब कहाँ वो सब..!!! भाई अपने घर, बहन अपने घर और मैं अपने घर. अपने- अपने डब्बों में बंद, सिमटे हुए और माँ- पिता जी कभी इस घर तो कभी उस घर, जब जहां उनका जी चाहे. शायद परिवार यूं ही बढ़ते हैं और संसार यूं ही चलता है…बिना थके, बिना रुके, अनवरत…..

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